सामाजिक कहानियां

सामाजिक कहानियों  (Social stories) का इस्तेमाल करना

आटिज़्म होने वाले कई बच्चों को, जिनकी बोलने और सीखने की क्षमता सही होती है, दूसरों की सोच, इच्छाएँ, और इरादे समझने में कठिनाई होती है। सामाजिक कहानियाँ (Gray & Garand, 1993; Gray, 1997) ऐसे बच्चों को ये मुश्किलें दूर करने में कारगर तरीकों की तरह सामने आ रही हैं।

सामाजिक कहानी किसी एक परिस्थिति या अवस्था के बारे में जानकारी देती है। यह बच्चे को उस परिस्थिति में सिलसिलेवार होने वाली घटनाओं के बारे में बताती है  और यह बताती हैं कि उस परिस्थिति या अवस्था में लोग क्या करते हैं, सोचते हैं, और महसूस करते हैं। बच्चे की ज़रूरत और क़ाबलियत (योग्यता) के मुताबिक कहानी को उसके अनुरूप बनाया जा सकता है और उसमें सामाजिक संकेतों (जैसे शारीरिक और चेहरे के हाव-भाव) और उनके मतलब के बारे में विस्तार से बताया जा सकता है।

ऐसी सामाजिक कहानियां परिवार के सदस्य बच्चे को भागीदार बना कर भी रच सकते हैं और इनमें हाल की परिस्थितियाँ और घटनाएं शामिल की जा सकती हैं। परिवार का ऐसी कहानियों का इस्तेमाल आटिज्म होने वाले बच्चे की सामाजिक समझ और व्यवहार बेहतर बनाने में असरदार साबित होता है। इनसे बच्चों में समाजानुकूल व्यवहार और सामाजिक नम्रता बढती है।

सामाजिक कहानियों को अन्य तरीकों और विधाओं (जैसे विडिओ फीडबैक या विडिओ मॉडलिंग) के साथ मिलाकर बच्चे की मदद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे संयुक्त या मिले हुए तरीक़े किसी एक खास अकेले तरीक़े से ज़्यादा असरदार साबित होते हैं।

सामाजिक कहानियाँ कैसे लिखी जाती हैं?

Gray (1998, 2000) की राय में नियंत्रित या निर्देशित करने वाली भाषा या वाक्यों की बजाय वर्णनात्मक और सकारात्मक वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। Swaggart व अन्य (1995) ने सामाजिक कहानी रचने के लिए नीचे लिखे तरीके बताये हैं:

  1. ऐसे व्यवहार को पहचानें और चुनें जिसे आप सामाजिक कहानी पढ़ने या सुनने से बदलना चाहें।
  2. उस व्यवहार में अभी जैसा हो रहा है उसके बारे में कुछ जानकारी इकट्ठी करें जिससे बाद में तुलना करके देखा जा सके कि बदलाव हो रहा है या नहीं।
  3. कहानी को छोटा ही रखें। अपनी भाषा मुख्यतः वर्णनात्मक रखें और निर्देशित या नियंत्रण करने वाले वाक्य कम से कम रखें।
  4. फोटो, आरेख और रेखाचित्रों का प्रयोग करें, और एक पन्ने पर तीन या चार लाइनों से ज़्यादा लिखने की कोशिश न करें।
  5. कहानी को रोचक बनाने की कोशिश करें। बच्चे को इसे अपने या औरों के साथ पढ़ते समय मज़ेदार माहौल बनाने के लिए प्रेरित करें।
  6. अगर मुमकिन हो तो कहानी के बारे में बच्चे से बातचीत करें, बच्चे को कहानी में क्या हुआ यह बताने के लिए बढ़ावा दें। शिक्षक की तरह व्यवहार करने की बजाय अपनी रुचि बच्चे को दिखाएँ और अपनी दिलचस्पी उसके साथ बाँटें।
  7. समय के साथ कहानी में कुछ संशोधन करें और उसमें कुछ नई चीज़ें डालें, बच्चे की भागीदारी से कहानी को और रोचक, उपयुक्त और प्रासंगिक बनायें।
  8. अगर हो सके तो कहानी की ऑडियो या विडिओ रिकॉर्डिंग बनाएं, जिसे बच्चा सुन या देख सके।

स्रोत और सन्दर्भ उल्लेख (References):

Gray, C.A. (1997). Social stories and comic strip conversations: Unique methods to improve social understanding. Paper presented at the Autism 1997 Conference of Future Horizons, Inc., Athens, GA. INTERNATIONAL JOURNAL OF SPECIAL EDUCATION Vol 21 No.3 2006 173

Gray, C.A. (1998). Social stories and comic strip conversations with students with Asperger syndrome and high-functioning autism. In E. Schopler, G.B. Mesibov, & L.J. Kunce (Eds.), Asperger syndrome or high-functioning autism (pp. 167-198)? New York: Plenum Press.

Gray, C.A. (2000). The new social storybook. Arlington, TX: Future Horizons.

Gray, C.A., &Garand, J.D. (1993). Social stories: Improving responses of students with autism with accurate social information. Focus on Autistic Behavior, 8(1), 1-10.

Swaggart, B.L., Gagnon, E., Bock, S.J., Earles, T.L., Quinn, C., & Myles, B.S., et al. (1995). Using social stories to teach social and behavioral skills to children with autism. Focus on Autistic Behavior, 10(1), 1-15.

सामाजिक कहानियों पर और सूचना के लिए वेबसाइट (Websites):

https://carolgraysocialstories.com/social-stories/what-is-it/