Enabling independence

ऑटिज़्म वाले बच्चों और युवाओं में स्वावलम्बन और आत्मनिर्भरता बढ़ाना 

गतिविधियों के कार्यक्रम और क्रमबद्ध सूचि इस्तेमाल करना

तस्वीरों से बने गतिविधियों के कार्यक्रम और सूचियां दो तरह की बनाई जा सकती हैं: एक जिस में  सारे दिन की क्रमबद्ध गतिविधियाँ हों और दूसरी जिस में किसी भी एक गतिविधि को हिस्सों या चरण में बांटा गया हो। ये कार्यक्रम और सूचियाँ कागज़ पर बना कर लैमिनेट करे जा सकते हैं, और विद्यार्थियों को मोबाइल फ़ोन या टेबलेट के ज़रिये भी भेजे जा सकते हैं। कार्यक्रम बनाने वाले किसी ऐप (app) से भी इनको बनाया जा सकता है।

इन तरीकों से किसी कार्यक्रम में कोई बदलाव आने के बारे में बताया जा सकता है और उस काम को बदलने के लिए इशारे या निर्देश दिए जा सकते हैं। तरह तरह के इशारे या निर्देश बनाए जा सकते हैं, जैसे स्पर्श संकेत, जैसे कम्पन के साथ आवाजों (बीप) को मिलाया जा सकता है। किसी काम के पूरा करने के लिए ज़रूरत के मुताबिक सहारा, सहायता और प्रोत्साहन दिया जा सकता है, और काम पूरा होने पर किसी तरह का (चिन्ह या चित्र के ज़रिये) इनाम दिया जा सकता है।  अगर ज़रूरत हो तो शुरू में ऐसी मदद ज़्यादा दी जा सकती है, लेकिन धीरे धीरे सहारे और सहायता को कम किया जाना चाहिए – हमें यह कोशिश करनी है कि बच्चा या युवा कम से कम सहारे और निर्देशों के साथ काम कर सके।

स्पर्श निर्देश का इस्तेमाल करना

स्पर्श संकेत (जैसे मोबाइल फ़ोन का कम्पन या थरथराहट) बच्चे की ऐसे काम करने में मदद कर सकते हैं जिन्हें कुछ निश्चित समय पर करने की ज़रूरत होती है और जिन्हें करना बच्चा जानता है (जैसे, उस समय कर रहे काम पर वापस ध्यान देने के लिये या किसी काम या खेल में कोई शुरुआत करने के लिये)। संकेतों या निर्देशों को धीरे धीरे घटाने, और बच्चे की प्रेरणा बढ़ाने से किसी दूसरे की मदद और करीबी सहारे की ज़रूरत घटती है, बच्चे का स्वाभिमान बढ़ता है और दूसरे लोग बच्चे को गिरी निगाह से नहीं देखते।

साथियों और हमउम्र बच्चों का समर्थन और सहयोग लेना 

बच्चे के कुछ अनुभवी साथी, उसकी सामाजिक और शैक्षिक समझ बढ़ाने में, उसको सिखा कर और उसके साथ साथ सीख कर मदद करते हैं। खास तौर पर, औरों से बातचीत करने में, सामाजिक मेल-जोल करने में, और औरों के साथ खेलने में वह अच्छी मदद कर सकते हैं। हमउम्र साथी बच्चे से पूछ कर और ध्यान दिला कर, उसके अच्छे व्यवहार की बड़ाई करके, गतिविधियाँ बच्चे के अनुकूल बना कर, और अच्छा सामाजिक वातावरण बना कर मदद कर सकते हैं। ऐसा सहयोग मिलने पर बड़ों और शिक्षक का काम आटिज्म वाले बच्चे को निर्देश देने की बजाय उस के साथियों को सिखाना और उनकी प्रेरणा बढ़ाना हो जाता है। ऐसा सहयोग एक, दो, या कई साथियों से अलग अलग समय मिल सकता है। रोज़मर्रा की गतिविधियों में साथियों से मदद मिलने से आटिज़्म वाले बच्चे की बातचीत करने की क्षमता और संचार कौशल बढ़ते हैं।

ख़ुद अपने काम और व्यवहार ध्यान देना सिखाना 

ख़ुद अपने आप की निगरानी करने से हमारा ध्यान अपने कुछ ऐसे व्यवहारों पर जाता है जिन पर आम तौर से  ध्यान नहीं जाता। किसी भी व्यक्ति को अपनी निगरानी खुद करना सिखा सही व्यवहार बढ़ाया और गलत व्यवहार कम किया जा सकता है। अपनी निगरानी करना आम तौर से चार चरणों में सिखाई जाती है:

  1. यह निर्धारित करना कि किस व्यवहार पर ध्यान देना सिखाना है,
  2. ऐसे व्यवहार के कारणों को पहचानना,
  3. बच्चे को इस व्यवहार पर ध्यान दिलाने के लिए एक तरीका तय करना, और
  4. बच्चे को ख़ुद अपने व्यवहार का ध्यान रखना सिखाना

ख़ुद अपने आप की निगरानी कई तरह से मदद कर सकती है, जैसे बार-बार दोहराए जाने वाले व्यवहार कम करना, औरों के साथ ठीक तरह से खेलना, रोज़मर्रा काम बड़ों की मदद के बिना कर सकना, काम करते समय सही व्यवहार बढ़ाना, और व्यवहार समाज के अनुकूल  बनाना। ख़ुद की निगरानी को साथियों और भाई बहनों के सहयोग से बढ़ाया जा सकता है और विडिओ मॉडलिंग के इस्तेमाल को भी इसके साथ जोड़ा जा सकता है।

विडिओ मॉडलिंग का इस्तेमाल करना

विडिओ मॉडलिंग  में बच्चे के खुद अपने या किसी और के सही काम या व्यवहार करने के तरीके को बार बार दिखा कर उस काम या व्यवहार का सही तरीका सिखया जाता है। विडिओ रिकॉर्ड करने के लिए किसी ख़ास व्यवहार या किसी काम करने के तरीके  (हुनर) को चुना जाता है। कोई अभिनेता या ऐक्टर (जो बच्चे के आस पास की उम्र का हो), या खुद वह बच्चा या युवा जिसे आटिज़्म हो विडिओ में मॉडल हो सकता है। विडिओ रिकॉर्ड करते समय, किसी काम या व्यवहार को सही तरीके से करने के लिए मदद (जैसे इशारों) की ज़रूरत हो सकती है लेकिन इनको बाद में एडिट करके हटाया जा सकता है। विडिओ दो से चार मिनट का होना चाहिए जिस से इसे आटिज़्म वाले बच्चे या युवा को बार बार दिखाया जा सके। विडिओ में देखे काम या व्यवहार को असल जीवन में नक़ल करने के लिए बच्चे को प्रोत्साहित किया जाता है।

आटिज़्म वाले कई लोगों को विडिओ में देखी हुई चीज़ें ज़्यादा और बेहतर याद रहती हैं और उनका ध्यान भी वहीं जाता है जहां जहाँ कैमरा फोकस हो रहा होता है। विडिओ मॉडलिंग का इस्तेमाल और तरीकों के साथ सफलतापूर्वक मिलाया जा सकता है, जैसे अपनी ख़ुद की निगरानी करना और अभ्यास करना। इससे आत्मनिर्भरता बढ़ सकती है और दूसरों के निर्देशों के भरोसे रहना कम होता है।

व्यक्तिगत (Individualised) कार्य प्रणालियाँ (work-systems) बनाना 

कोई कार्य प्रणाली बच्चे को चार तरह की सूचनाएँ देती है

  1. काम जो किया जाना है
  2. कितना काम किया जाना है
  3. बच्चे को कैसे मालुम होना है कि काम ख़त्म हो गया या कितना हो गया है, और
  4. काम ख़त्म होने पर क्या करना है

कार्य प्रणाली बनाने के लिए इन चार बातों पर ध्यान दें:

 क) ऐसी व्यवस्था बनायें जिस से बच्चे को काम करने में मदद मिले, जैसे हर काम के लिए अलग अलग बक्सा या थैला हो (जिस में उस काम से संबंधित सामान हो) और जिस पर उस काम का चित्र बना हो या नाम लिखा हो,

ख) किस समय क्या काम करना है, इस बारे में तस्वीरों से बने क्रमबद्ध कार्यक्रम और सूचियां हों,  

ग) काम कैसे करना है, इस बारे चित्रों से बनी जानकारी जिस में किसी भी एक गतिविधि को हिस्सों या चरण में बांटा गया हो, और  

 घ) बच्चे को यह जानकारी देना कि काम क्यों किया गया और उस से बच्चे को क्या हासिल होगा (उपलब्धि)।

सामाजिक कहानियों  (Social stories) का इस्तेमाल करना

आटिज़्म होने वाले कई बच्चों को, जिनकी बोलने और सीखने की क्षमता सही होती है, दूसरों की सोच, इच्छाएँ, और इरादे समझने में कठिनाई होती है। सामाजिक कहानियाँ (Gray & Garand, 1993; Gray, 1997) ऐसे बच्चों को ये मुश्किलें दूर करने में कारगर तरीकों की तरह सामने आ रही हैं।

सामाजिक कहानी किसी एक परिस्थिति या अवस्था के बारे में जानकारी देती है। यह बच्चे को उस परिस्थिति में सिलसिलेवार होने वाली घटनाओं के बारे में बताती है  और यह बताती हैं कि उस परिस्थिति या अवस्था में लोग क्या करते हैं, सोचते हैं, और महसूस करते हैं। बच्चे की ज़रूरत और क़ाबलियत (योग्यता) के मुताबिक कहानी को उसके अनुरूप बनाया जा सकता है और उसमें सामाजिक संकेतों (जैसे शारीरिक और चेहरे के हाव-भाव) और उनके मतलब के बारे में विस्तार से बताया जा सकता है।

ऐसी सामाजिक कहानियां परिवार के सदस्य बच्चे को भागीदार बना कर भी रच सकते हैं और इनमें हाल की परिस्थितियाँ और घटनाएं शामिल की जा सकती हैं। परिवार का ऐसी कहानियों का इस्तेमाल आटिज्म होने वाले बच्चे की सामाजिक समझ और व्यवहार बेहतर बनाने में असरदार साबित होता है। इनसे बच्चों में समाजानुकूल व्यवहार और सामाजिक नम्रता बढती है।

सामाजिक कहानियों को अन्य तरीकों और विधाओं (जैसे विडिओ फीडबैक या विडिओ मॉडलिंग) के साथ मिलाकर बच्चे की मदद के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे संयुक्त या मिले हुए तरीक़े किसी एक खास अकेले तरीक़े से ज़्यादा असरदार साबित होते हैं।

सामाजिक कहानियाँ कैसे लिखी जाती हैं?

Gray (1998, 2000) की राय में नियंत्रित या निर्देशित करने वाली भाषा या वाक्यों की बजाय वर्णनात्मक और सकारात्मक वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। Swaggart व अन्य (1995) ने सामाजिक कहानी रचने के लिए नीचे लिखे तरीके बताये हैं:

  1. ऐसे व्यवहार को पहचानें और चुनें जिसे आप सामाजिक कहानी पढ़ने या सुनने से बदलना चाहें।
  2. उस व्यवहार में अभी जैसा हो रहा है उसके बारे में कुछ जानकारी इकट्ठी करें जिससे बाद में तुलना करके देखा जा सके कि बदलाव हो रहा है या नहीं।
  3. कहानी को छोटा ही रखें। अपनी भाषा मुख्यतः वर्णनात्मक रखें और निर्देशित या नियंत्रण करने वाले वाक्य कम से कम रखें।
  4. फोटो, आरेख और रेखाचित्रों का प्रयोग करें, और एक पन्ने पर तीन या चार लाइनों से ज़्यादा लिखने की कोशिश न करें।
  5. कहानी को रोचक बनाने की कोशिश करें। बच्चे को इसे अपने या औरों के साथ पढ़ते समय मज़ेदार माहौल बनाने के लिए प्रेरित करें।
  6. अगर मुमकिन हो तो कहानी के बारे में बच्चे से बातचीत करें, बच्चे को कहानी में क्या हुआ यह बताने के लिए बढ़ावा दें। शिक्षक की तरह व्यवहार करने की बजाय अपनी रुचि बच्चे को दिखाएँ और अपनी दिलचस्पी उसके साथ बाँटें।
  7. समय के साथ कहानी में कुछ संशोधन करें और उसमें कुछ नई चीज़ें डालें, बच्चे की भागीदारी से कहानी को और रोचक, उपयुक्त और प्रासंगिक बनायें।
  8. अगर हो सके तो कहानी की ऑडियो या विडिओ रिकॉर्डिंग बनाएं, जिसे बच्चा सुन या देख सके।

स्रोत और सन्दर्भ उल्लेख (References):

Gray, C.A. (1997). Social stories and comic strip conversations: Unique methods to improve social understanding. Paper presented at the Autism 1997 Conference of Future Horizons, Inc., Athens, GA. INTERNATIONAL JOURNAL OF SPECIAL EDUCATION Vol 21 No.3 2006 173

Gray, C.A. (1998). Social stories and comic strip conversations with students with Asperger syndrome and high-functioning autism. In E. Schopler, G.B. Mesibov, & L.J. Kunce (Eds.), Asperger syndrome or high-functioning autism (pp. 167-198)? New York: Plenum Press.

Gray, C.A. (2000). The new social storybook. Arlington, TX: Future Horizons.

Gray, C.A., &Garand, J.D. (1993). Social stories: Improving responses of students with autism with accurate social information. Focus on Autistic Behavior, 8(1), 1-10.

Swaggart, B.L., Gagnon, E., Bock, S.J., Earles, T.L., Quinn, C., & Myles, B.S., et al. (1995). Using social stories to teach social and behavioral skills to children with autism. Focus on Autistic Behavior, 10(1), 1-15.

सामाजिक कहानियों पर और सूचना के लिए वेबसाइट (Websites):

https://carolgraysocialstories.com/social-stories/what-is-it/

https://best-practice.middletownautism.com/approaches-of-intervention/social-stories/