आपस में सामाजिक मेल-जोल और बात-चीत करते बच्चों में हम क्या देखते हैं? हमें पहले कुछ व्यवहार दिखाई देते हैं, जैसे आपस में बात चीत करना, मिलना जुलना और मिलकर खेलना और मजा करना| लेकिन अगर हम इसे और गौर से देखें तो इस व्यवहार में सम्मिलित और प्रक्रिया भी दिखेंगी, जैसे:
- आपस में मिलने जुलने और बात करने में रुचि और उत्साह,
- एक दूसरे की तरफ ध्यान देना,
- एक दूसरे के व्यवहार और बातों को समझना – उनकी इच्छाओं, उनके मकसद और उनकी सोच को समझना
- विचार के साथ, किसी की बात या व्यवहार पर, प्रतिक्रिया करना
- मेल जोल में पारस्परिकता और मिलनसारिता से शामिल होना
- औरों की परेशानी पर सहानुभूति करना
- अपनी रुचि को औरों से बाँटना
- औरों के साथ रहने में खुश होना और उनके साथ ख़ुशी को बांटना
सामाजिक सोच ऐसी मानसिक प्रक्रिया है जो हमारे व्यवहार को दिशा देती है और हमारे सामाजिक जीवन को सफल बनती है|
हम अक्सर अपने सामाजिक व्यवहार को बिना ज्यादा सोचे ऐसे करते हैं जैसे हमने औरों को करते देखा हो – जैसे बड़ों का आदर करना, बच्चों से या अपने नजदीक के लोगों से प्यार करना| लेकिन कई बार हमें स्थिति को देखकर और सोचकर अपना व्यवहार बनाना पड़ता है, खास तोर से अपनी उम्र के लोगों के साथ| अगर हमारा व्यवहार स्थिति के हिसाब से ठीक ना हो तो और लोग अलग हो जाते है और अनदेखा करते हैं|
क्या यह सब सिर्फ होशियारी या बुद्धिमत्ता की बात नहीं है? हाँ, कुछ थोड़ी हद तक| सामाजिक सोच में कुछ विशेष मानसिक प्रक्रिया भी हैं जैसे औरों की सोच और एहसास को समझना, सहानबूती दिखाना, अपनी सही प्रतिक्रिया करना|0 यह दिमाग के विशेष हिस्सों के संगठन से उत्पन्न होती हैं और आटिज्म में इनके विकास में कमी होती है|
सामाजिक सोझ की कुछ विशेषताएं
- हरेक की सामाजिक सोझ में फर्क होता है |
- सामाजिक सोझ वातावरण से प्रभावित होती है और इसमें विकास होता रहता है |
- समाजिक सोझ कैसे काम करे और व्यवहार कैसा हो यह स्थिति पर भी निर्भर करता है. सहायता मिलने से यह बेहतर होते हैं |
- समझिक सोझ का निर्माण मस्तिष्क के कई हिस्सों के एक साथ काम करने के संगठन से होता है, इस वजह से इसपर किसी भी दिमागी अवस्था का इसपर असर पड़ता है. किसी दिमागी हिस्से मैं कमी होने पर इस संगठन के और हिस्से उस कमी को पूरा करने में मदद भी करते हैं |