आटिज्म क्या है?

आटिज्म क्या है?

बच्चों के विकास में तरह तरह के विकार होते हैं – जैसे भाषा के बोलने या समझने में, चलने में, ध्यान दे पाने में|

आटिज्म या आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर ऐसी अवस्था है जिसमें बच्चों के विकास में तीन तरह के विकार एक साथ होते हैं:

  1. आपसी संपर्क में बात-चीत कम या ना कर पाना
  2. पारस्परिक मेल-जोल कम या ना कर पाना
  3. कल्पनाशील तरीके से ना खेल या सोच पाना, कुछ काम या बातें एक ही तरीके से करना, कुछ काम या बात बार बार दुहराना, बहुत संकीर्ण या अजीब रूचि रखना

आटिज्म बच्चों के विकास में एक तरह का विकार है| इसकी शुरुआत जन्म से पहले (गर्भावस्था मैं) या प्रारंभिक विकास में होती है| इसका असर बच्चों के विकास की कई क्षमताओं पर पड़ता है जैसे सोचने-समझने, बोलने, मेल-जोल करने और अन्य व्यहार पर|

आटिज्म में बच्चों के विकास में विभिन्न प्रकार के आसार या व्यवहार हो सकते हैं, जो हर बच्चे को अलग तरीके से असर करते हैं और हर बच्चे में कुछ अलग तरीके से दिखाई देते हैं| इनमें से कुछ आसार या व्यवहार उम्र के साथ भी प्रकट होते और बदलते हैं, और कुछ केवल किसी एक तरह की स्तिथि में ही दिखाई देते हैं – जैसे की जब अनजान या बहुत लोग एक साथ हों या जब कोई स्तिथि बदले|

आटिज्म से प्रभावित हर बच्चा और हर व्यक्ति अलग होता है|

स्पेक्ट्रम का यहाँ अर्थ यह है कि आटिज्म में होने वाले आसारों का विस्तार बहुत बड़ा है और हर बच्चे में इसका प्रभाव अलग अलग तरह से हो सकता है.[i]

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

आटिज्म का सही नाम क्या है?

आटिज्म के लिए कुछ और नाम भी प्रयोग किये जाते हैं| आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर और अलग अलग तरह के आटिज्म का एक मिला जुला नाम है| जिन बच्चों की पढने की और बोलने की क्षमता ठीक होती है उनके लिए अस्पेरजर सिंड्रोम भी प्रयोग करते हैं| हिंदी में आत्मकेंद्रित शब्द का भी प्रयोग करते है| इस लेख में आटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर की जगह आटिज्म शब्द का प्रयोग सिर्फ सहूलियत के लिए किया गया है|

सिर्फ किसी नाम से ही बच्चे की जरूरतें पूरी तरह नहीं पता चलती, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है की उसकी क्षमताओं और जरूरतों का सही विवरण होना चाहिये|

क्या आटिज्म के साथ और भी परेशानियाँ होती हैं?

जिन्हें आटिज्म है उनमें से करीब आधे से तीन चौथाई (50-75%) लोगों को, अलग अलग तरह की और अलग अलग स्तर की, सीखने-समझने की परेशानी (intellectual or learning disability) भी होती हैं, जिसका असर इनकी पढाई-लिखाई और रोजमर्रा के काम करने की क्षमता पर पड़ता है|

बच्चों के विकास के विकारों में अकसर कई परेशानियाँ एक साथ होती है| आटिज्म में भी बच्चों को ध्यान देने की, खाने, सोने, सोचने या व्यवहार की परेशानियाँ हो सकती हैं| आटिज्म में बच्चे की जरूरतें सिर्फ डायग्नोसिस से ही नहीं पता चलती, बल्कि उस की सारी परेशानियों और क्षमताओं का वर्णन करने से ठीक पता चलता है|

क्या कुछ बच्चों में आटिज्म के कुछ चिन्ह ही हो सकते हैं चाहे पूरी डायग्नोसिस ना हो?

हर एक बच्चे और व्यक्ति के विकास और क्षमताओं में फर्क होता है, कुछ की भाषा अच्छी या कमजोर होती है, कुछ मेल जोल में ज्यादा या कम रूचि लेते है| कुछ बच्चों में, खासतोर से उन बच्चों में जिन्हें बोलने, सुनने, देखने या सीखने समझने की परेशानी हो, या जो ऐसे परिवार से हों जिसमें किसी को आटिज्म हो, आटिज्म के कुछ चिन्ह अक्सर दिखाई देते हैं| आटिज्म का डायग्नोसिस तब बनाया जाता है जब ऊपर लिखे हुए तीनों तरह के विकार (triad of impairment) एक साथ होते हैं. [ii],[iii]

आटिज्म किस वजह से होता है?

आटिज्म एक आनुवांशिक या जेनेटिक विकार है| यह बच्चों के पालने पोसने के तरीके से या उनके खाने की कमी या रहन सहन के तरीके से नहीं होता है| बच्चे को आटिज्म होने में उसके माता-पिता की कोई गलती नहीं होती है| यह जरुरी नहीं की जेनेटिक वजह मां या पिता से आईं हों| जेनेटिक वजह बच्चे में नयी भी शुरू होती हैं| जेनेटिक वजह का असर बच्चे के दिमाग पर पड़ता है जिससे विकास पर असर पड़ता है और आटिज्म विकार होता है [iv]| जेनेटिक वजह की विस्तार में जानकारी के लिए देखें आटिज्म के आनुवंशिक या जेनेटिक कारण|

आटिज्म कितने बच्चों को होता है?

आटिज्म की जानकारी बढ़ने से इसकी पहचान अब ज्यादा होने लगी है| आज-कल यह अनुमान है की करीब हर 70 में से 1 लोगों को आटिज्म होता है|

क्या आटिज्म का इलाज़ हो सकता है?

आटिज्म के इलाज़ की कोई दवाई नहीं है| लेकिन जिस बच्चे को आटिज्म है उसकी बहुत तरह से मदद की जा सकती है| सामान्य बच्चों की तरह जिन बच्चों को आटिज्म है उनका भी विकास बढ़ता है और यह बच्चे भी और बच्चों की तरह अपनी सभी क्षमताओं में बदलते हैं|  सही मदद, जानकारी और पढाई मिलने से इन बच्चों का विकास भी और बच्चों की तरह ही बढ़ सकता है| कुछ बच्चे जिन्हें आटिज्म है बड़े होकर अपना जीवन अपने ही भरोसे, और अच्छे से, जीते हैं और रोजगार और परिवार बनाने में सफल होते हैं, व और बच्चों को जीवन भर सहायता की जरूरत होती है|

 

[i] Wing, L., & Gould, J. (1979). Severe impairments of social interaction and associated abnormalities in children: Epidemiology and classification. Journal of autism and developmental disorders, 9(1), 11-29.

[ii] Klin, A., Jones, W., Schultz, R., Volkmar, F., & Cohen, D. (2002). Defining and quantifying the social phenotype in autism. American Journal of Psychiatry, 159(6), 895-908

[iii] Constantino, J.N. & Todd, R.D.  Autistic traits in the general population: a twin study. Arch. Gen. Psychiatry 60, 524–530 (2003).

[iv] Jones, E. J., Gliga, T., Bedford, R., Charman, T., & Johnson, M. H. (2014). Developmental pathways to autism: a review of prospective studies of infants at risk. Neuroscience & Biobehavioral Reviews, 39, 1-33.